लिपि लेखन की विशिष्ट प्रणाली अथवा शैली होती है| इसे भाषा विशेष के ध्वन्यात्मक प्रतिनिधिक प्रतीकों के तौर पर समझा जा सकता है| आदि काल से भारत उन अनेक देशों में रहा है जहां भाषा, लिपि और संस्कृति की बहुलता पाई जाती रही है| आज भी देश के विभिन्न भागों में सहस्त्र भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं| इसके कारण ही सम्भवत: भारतीय पाण्डुलिपियां अनेक विषयों को समेटे हुए हैं|
भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत गणराज्य की केवल 22 आधिकारिक भाषाएं सूचीगत हैं| जहां तक राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का सम्बंध है, यह मुख्यत: पाण्डुलिपियों की प्राचीन लिपियों से संबंधित कार्य देखता है| कुछ ऐसी प्राचीन लिपियां हैं जिन्हें पाण्डुलिपि शास्त्र एवं प्राचीन शिलालेख अध्ययन की कार्यशालाओं में पढ़ाया जाता है अर्थात ब्राह्मी, गुप्त, कुटिल, नागरी, नंदीनागरी, शारदा, ग्रंथ, खरोष्ठी, वट्टेलुटु, कैथी, करणी, उड़िया, मोडी, सिद्धम, लेपचा, नस्ख, नस्तालिक, कुफिक, रैकेयी, सुल्सी इत्यादि|
70% पाण्डुलिपियों को लिखने के लिए अधिकांश भारतीय लिपियों का प्रयोग संस्कृत भाषा में किया गया है| अन्य 30% पाण्डुलिपियां असमी, बंगाली, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैथेयी/मणिपुरी, मराठी, नेपाली, मेवाड़ी/नेपाल भाषा, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, चकमा इत्यादि भाषाओं में हैं|