वैदिक काल से आरंभ होकर भारतीय समाज ने एक ज्ञानपरक समाज के तौर पर उत्कृष्टता हासिल करने के सभी प्रयास किए हैं| मानव जीवन के परम लक्ष्य का पता लगाने के उद्देश्य ने अनंत काल से मानव समाज को संचालित किया है और यही जिज्ञासा अंतत: बौद्धिक संवाद का केंद्र बिंदु रही है| समाज में सही मायनों में बहुलता ने इस मार्ग को आसान किया है और कालातीत में इसे और सघन और सार्थक बनाया है| संवाद के इस निर्बाध प्रवाह ने बहु-आयामी भारतीय बौद्धिक परंपरा को गति प्रदान की और स्वयं भी सम्पुष्ट हुई| विभिन्न पंथों ने भिन्न-भिन्न कालों में विभिन्न सिद्धांत रखे जिसमें उन्होंने उस परम उद्देश्य की पूर्ति के मार्ग सुझाए|
इन सिद्धांतों को बाद में आने वाले विद्वानों द्वारा और नए पंथियों द्वारा दिए गए सृजनात्मक स्पष्टीकरणों और महत्त्वपूर्ण निर्वचनों द्वारा अभेद्य कर दिया गया| परम्परा ने बौद्धिकता का कोई मुद्दा अछूता नहीं छोड़ा जिसके परिणामस्वरूप देश में सार्थक लेखन का उद्भव हुआ भाग्यवश जो आज हमारी विरासत है| इन लेखनों की विषय-वस्तु वेद, वेदांत, दर्शन, आयुर्वेद, सौंदर्यशास्त्र, खगोल शास्त्र, ज्योतिष, योग, वास्तु, गणित, भाषा विज्ञान और इस प्रकार की अन्य विषय वस्तुएं रही हैं जिन्हें विभिन्न प्राचीन लिपियों और भाषाओं में लिखा गया है|