उद्देश्य
भारत की पाण्डुलिपियाँ पूरे देश में ज्ञात तथा अज्ञात संग्रहों में बिखरी हुई हैं। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन का एक प्रमुख कार्यक्रम है भारतीय पाण्डुलिपियों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने तथा संकलित करने के लिए प्रथम ठोस प्रयास। मिशन के सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान के रूप में इसे सार्वजनिक तथा निजी संग्रहों में भारतीय पाण्डुलिपियों के संबंध में सूचना, जिसे विभिन्न सूचना एकत्रण प्रक्रियाओं के माध्यम से एकत्रित किया जाता है, के साथ संकलित किया जा रहा है।
जब वर्ष 2002 में राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (एनएमएम) की स्थापना की गई थी तब इसके सामने एक चुनौती पाण्डुलिपियों की उपलब्धता के संबंध में जानकारी एकत्रित करने, पाण्डुलिपियों का पता लगाने और पाण्डुलिपियों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने की थी। इस तथ्य को देखते हुए कि पश्चिम के विकसित देशों की तरह भारत में पाण्डुलिपियों की उपलब्धता केवल संगठित भंडार गृहों तक सीमित नहीं है, यह चुनौतीपूर्ण लग रहा था। यहाँ पाण्डुलिपियाँ पुस्तकालयों, मठों, मंदिरों, मस्जिदों और घरों में उपलब्ध हैं। इसलिए यह न केवल सर्वाधिक पाण्डुलिपियों वाला देश है बल्कि सर्वाधिक भंडार गृहों वाला देश भी है। मिजोरम से गुजरात तक और लेह से कन्याकुमारी तक हमें कहीं भी पाण्डुलिपि मिल सकती है। इस संबंध में अनुमान व्यर्थ सिद्ध होगा।
स्थापना के बाद एनएमएम ने पाण्डुलिपियों का पता लगाने और प्रलेखन की इस चुनौती का सामना करने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की है। इसके अस्तित्व के प्रथम और द्वितीय चरणों में पाण्डुलिपियों के भंडार गृहों का पता लगाने और पोस्ट सर्वेक्षण के माध्यम से विस्तृत प्रलेखन के लिए घर-घर जा कर सर्वेक्षण करने पर ज़ोर दिया गया। इसके साथ-साथ दूरगामी परिणामों के लक्ष्य से बनाई गई एक कार्यनीति के तहत देश के विभिन्न कोनों में स्थित संस्थाओं का एक नेटवर्क तैयार किया गया है। इन संस्थाओं को पाण्डुलिपियों का पता लगाने और प्रलेखन करने की ज़िम्मेदारी सौंपने के लिए संस्थागत ढांचा तैयार किया गया है। धीरे-धीरे संस्थाओं के नेटवर्क ने अधिक दक्षता तथा सटीकता के साथ प्रलेखन की ज़िम्मेदारी उठाना शुरू कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप ध्यान अन्यत्र केन्द्रित हो गया है और अब सर्वेक्षण और पोस्ट-सर्वेक्षण कार्यकलाप पाण्डुलिपि सूचना केन्द्रों अथवा एमआरसी के माध्यम से किए जाते हैं। यह पूर्व में अपनाई गई नीति में एक उल्लेखनीय बदलाव है, यद्यपि नेटवर्क का बीज ही मिशन शुरू होने के तुरंत बाद बोया गया था। नेटवर्क को सुदृढ़ बनाने और इसे अधिक व्यापक तथा प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं। परिणामस्वरूप बहुत सारे लगभग निष्क्रिय पाण्डुलिपि सूचना केन्द्रों को पुनरुज्जीवित किया गया है और क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करने तथा आंकड़ा एकत्रण को अति आवश्यक प्रोत्साहन देने के लिए बड़ी संख्या में नए पाण्डुलिपि सूचना केन्द्रों की स्थापना की गई है।
भारत की अधिकतर पाण्डुलिपि संपदा का प्रलेखन विद्यार्थियों तथा शोधकर्ताओं की सहायता हेतु संदर्भ के लिए एक साझा पोर्टल उपलब्ध कराने की पद्धति से नहीं किया गया है। कई मामलों में इन पाण्डुलिपियों की कोई जानकारी नहीं रही है अथवा इन तक पहुँच नहीं रही है, जो पूर्व की तथा वर्तमान की ज्ञान संस्कृतियों के बीच अंतर पैदा करता है।
एनएमएम भारत में पाण्डुलिपियों की एक राष्ट्रीय सूची बना कर पाण्डुलिपियों के विस्तृत प्रलेखन के कार्य में संलग्न है। इलेक्ट्रोनिक सूची पूरे देश में धार्मिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक संस्थाओं और निजी संग्रहों से पाण्डुलिपियों के संबंध में सूचना प्रदान करती है।