दिनांक 01-07 फरवरी, 2005, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सहयोग से। इस प्रदर्शनी में देश के दूर दराज के क्षेत्रों में विभिन्न जैव संरक्षण सामग्रियों और व्यवहार में लाई जा रही तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शनी का आयोजन इस उद्देश्य से किया गया था कि वास्तविक सामग्रियों और पद्धतियों के प्रदर्शन से सेमिनार में भाग लेने वाले प्रतिभागियों के साथ-साथ सामान्य जनता को भी केवल प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके पाण्डुलिपियों का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी। विभिन्न औषधीय पौधे और अजैविक सामग्रियां भी प्रदर्शित की गई थीं, जिसने दर्शकों को व्याख्यानों के तकनीकी पहलुओं से जुड़ने में सहायता की। भारत के विभिन्न भागों से इस तरह की पद्धति का उपयोग करने वालों को पद्धतियों और सामग्रियों का प्रदर्शन करने हेतु आमंत्रित किया गया था, जिसका वे सदियों से उपयोग कर रहें हैं, जैसे नीम पत्ता, कस्टर्ड ऐप्पल के बीज और से रेजिन अर्क।
01 अक्तूबर, 2016-07 जनवरी, 2007, म्यूज़ियम फुअर अंगेंवानडते कुंस्थ, फ्रेंकफर्ट
भारत के बाहर आयोजित इस तरह की पहली प्रदर्शनी में सदियों से उपमहाद्वीप में चली आ रही सभी विभिन्न पाण्डुलिपि परम्पराओं पर लगभग ध्यान दिया गया था। 70 पाण्डुलिपियों और 20 संबंधित सामग्रियों के साथ इस प्रदर्शनी में सभी पाण्डुलिपियों के व्यापक विषय, सहायक सामग्री, भाषाएं, लिपियां, लेखन सामग्रियां, आकार और रूप शामिल थे।
बी. एन. गोस्वामी, प्रदर्शनी के आयुक्त द्वारा बहुत सावधानी से चयनित यह प्रदर्शनी सबसे बेहतर भारतीय मेधा और कलात्मक परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करती है। प्रदर्शनी के कुछ मुख्य आकर्षणों में- रामायण के बाल खंड का सचित्र संस्करण, 19वीं शताब्दी के मध्य में मैसूर शैली में चित्रकारी, दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की दो टेराकोटा मूर्तियां, प्रत्येक पर अंकित ब्राह्मी वर्णों में पठनीय बोर्ड, बांस के पत्तों पर लिखा गया ओडिशा से गीत गोविंद और अन्य लिखित पर्ण जिन्हें रूद्राक्ष के मनकों की माला की तरह सजाया गया, राजस्थान के पलकप्या गजायुर्वेद के पत्र में राक्षस के रूप में हाथी पर ज्वर का हमला दिखाया गया है, पवित्र कुरान, जो एक व्यक्ति के हाथ की हथेली से छोटी है और जिस पर मुगल बादशाह की मुहर अंकित है, शामिल हैं।
पार्थिव शाह द्वारा डिजाइन की गयी प्रदर्शनी का स्वरूप उस परिवेश की भी याद दिलाता था, जिसमें इन पाण्डुलिपियों को मूल रूप से लिखा और पढ़ा जाता था। रंगों जैसे तांबा, ईंट जैसा लाल, हल्दी और पारसी नील के साथ-साथ सामग्रियों जैसे पृष्ठभूमि के लिए खादी, पाण्डुलिपियों के प्रदर्शन के लिए लकड़ी के बुक स्टैंड का उपयोग और संस्थापन, ऐसे स्थानों की याद दिलाते हैं, जहां पाण्डुलिपियों को पवित्र माना जाता है, प्रदर्शनी उस श्रद्धा का उदाहरण भी प्रस्तुत करती है, जैसाकि भारत में पाण्डुलिपियों को प्रायः दी जाती है।
मूलतः फ्रैंकफर्ट में प्रदर्शित पाण्डुलिपियों को पुनः राष्ट्रीय अभिलेखागार की सहायता से नई दिल्ली में प्रदर्शित किया गया था। इस प्रदर्शनी को 6 खण्डों में बांटा गया था-