उद्देश्य
    • राष्ट्र स्तरीय सर्वेक्षण और सर्वेक्षणोत्तर के माध्यम से पाण्डुलिपियों का पता लगाना|
    • उस राष्ट्रीय इलैक्ट्रॉनिक डेटाबेस के लिए प्रत्येक पाण्डुलिपि और पाण्डुलिपि संग्रह क्षेत्र (रिपोज़िटरी) का प्रलेखन करना जिसमें मौजूदा रूप से चार मिलियन पाण्डुलिपियों पर सूचना निहित है जिससे यह विश्व में भारतीय पाण्डुलिपियों पर सबसे बड़ा डेटाबेस हो जाता है|
    • संरक्षण की आधुनिक और देशी विधियों दोनों प्रकार से पाण्डुलिपियों का संरक्षण किया जाए और पाण्डुलिपि संरक्षकों की नई पीढ़ी को प्रशिक्षित किया जाए|
    • भाषाओं, लिपियों और आलोचनात्मक संपादन और पाठों का कैटलॉग तैयार करने तथा पाण्डुलिपियों के संरक्षण जैसे पाण्डुलिपियों के अध्ययनों के विभिन्न पहलुओं में अगली पीढ़ी के विद्वानों को प्रशिक्षित करना|
    • सर्वाधिक दुर्लभ और विलुप्तप्राय पाण्डुलिपियों के अंकीकरण द्वारा पाण्डुलिपियों की उपलब्धता का प्रवर्तन करना|
    • अप्रकाशित पाण्डुलिपियों और कैटलॉगों के महत्त्वपूर्ण अंकों के प्रकाशन के माध्यम से पाण्डुलिपियों की उपलब्धता का प्रवर्तन करना|
    • व्याख्यानों, विचार गोष्ठियों, प्रकाशनों और अन्य आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से पाण्डुलिपियों के साथ जन-संलग्नता का सुविधाकरण करना|

    मिशन के समक्ष चुनौतियां

    • भारत की पाण्डुलिपीय सम्पदा अनुमानत: दस मिलियन पाण्डुलिपियां हैं और यह संभवत: विश्व का सबसे बड़ा संकलन है|
    • पाण्डुलिपियां बड़ी संख्या में भाषाओं और लिपियों में पाई जाती हैं जिनमें से अधिकांश को अब पढ़ा नहीं जा सकता|
    • पाण्डुलिपियां संग्रहालयों, अध्ययन संस्थानों से लेकर निजी घरों और छोटे-बड़े पूजाघरों तक विभिन्न प्रकार के संग्रह क्षेत्रों में पाई जाती हैं|
    • अक्सर यह पाया जाता है कि पाण्डुलिपियों की वर्षों से उपेक्षा हुई है और उनकी भौतिक अवस्था काफी खराब होती है – वे कीटयुक्त, फफूंदयुक्त अथवा नाज़ुक और धुंधली होती हैं|
    • और अंतत: संभवत: सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रूप से कथित तौर पर ‘आधुनिक ज्ञान’ और पाण्डुलिपियों में निहित ज्ञान के बीच कोई संबंध नहीं होता| ऐसे विद्वान शीघ्र ही लुप्त हो रहे हैं जो पाण्डुलिपियों का अध्ययन और प्रयोग जानते हों और विद्वानों की नई पीढ़ी चुनौती को पूरा नहीं कर पा रही है|
    • अक्सर यह देखा गया है कि पाण्डुलिपि में निहित ज्ञान हमारे समय में संगत नहीं है| अब जबकि आयुर्वेद और यूनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों, वास्तु शास्त्र जैसे निर्माण विज्ञान और प्राचीन साहित्य और दर्शन में विश्व रुचि ले रहा है, तो पाण्डुलिपियों की खोज पुन: आरंभ हो गई है| सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है कि, पाण्डुलिपियों को भारत की स्मृति के रिकॉर्ड के तौर पर भारत के अतीत के समाज, संस्कृति और राजनीति के रिकॉर्ड के तौर पर उनके महत्त्व के लिए संरक्षित किया जाए|