स्कूल कार्यक्रम

    युवा लोगों के लिए पाण्डुलिपि विस्तार

    मिशन की गतिविधियों को न केवल हमारी विरासत (जैसा कि पाण्डुलिपियों में पाया गया है) को संरक्षित करने के लिए निर्देशित किया जाता है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए इसे सार्थक बनाने के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार, युवाओं की भागीदारी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। मिशन, स्कूली बच्चों को पाण्डुलिपियों से परिचित कराने और हमारी इस वृहत विरासत के प्रति उनकी रुचि पैदा करने के लिए उनसे बातचीत करता है।

    अब तक, मिशन के स्कूल कार्यक्रम में दो राज्यों - दिल्ली और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।

    जीवित शब्द (लिविंग वर्ड्स)

    येलोकैट आर्ट्स कंपनी की मदद से दिल्ली के 10 स्कूलों में लिविंग वर्ड्स नामक थियेटर कार्यक्रम आयोजित किया गया था। हिंदी में 45 मिनट के अभिनय को लघु महाभारत कहा गया था। महाभारत की कहानी के विशिष्ट दृश्यों का अभिनय किया गया था, इसके बाद उनके साथ एक बातचीत का सत्र रखा गया था, जहां पाण्डुलिपियों और पाण्डुलिपियों के चित्र दिखाए गए थे। तत्पश्चात, बच्चों को छोटे समूहों में बांटा गया और लोकप्रिय कहानियों के पात्रों के आधार पर प्रहसन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसका उद्देश्य उन्हें पाण्डुलिपियों की आकर्षक दुनिया और पाण्डुलिपियों के माध्यम से इन अद्भुत कहानियों तक पहुंचने के मार्ग से परिचित कराना था।

    पत्रम

    द चिल्ड्रेन एजुकेशनल एकेडमी, हैदराबाद के सहयोग से अक्तूबर 2006 में आंध्र प्रदेश में स्कूल कार्यक्रम आयोजित किया गया था। बच्चों से संवाद के माध्यम के रूप में आंध्र में मनोरंजन के एक लोकप्रिय रूप-कठपुतली को चुना गया था। इस कार्यक्रम में स्कूली बच्चों को जोड़ते हुए कृष्ण देवराय और तेनाली राम से संबंधित कहानियों के साथ-साथ समकालीन प्रसंग (एपिसोड) भी शामिल था। पूरे समय पाण्डुलिपियों, कैसे मौखिक परम्पराओं को पाण्डुलिपियों में परिवर्तित किया जाता है, हमारे जीवन में पाण्डुलिपियों की भूमिका और वर्तमान में वे किस प्रकार की उपेक्षा का सामना कर रहे हैं, पर जोर दिया गया था । यह कार्यक्रम पाण्डुलिपियों में छात्रों की रुचि पैदा करने में बेहद सफल था - कोई कैसे ताल के पत्तों पर एक लिखता है? किस तरह के लेखन उपकरण का उपयोग किया जाता है? कैसे प्रतीकों को लिपि में विकसित किया गया था -आदि छात्रों द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्न थे। इस कार्यक्रम में आंध्र प्रदेश के 11 जिलों के 126 स्कूलों के 1600 से अधिक बच्चों ने भाग लिया।

    कौतुहल

    मिशन की चौथी सालगिरह समारोह के हिस्से के रूप में, फरवरी 2007 में भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में एक-दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। भागीदारी हेतु 3 स्कूल आमंत्रित किए गए थे- भारतीय विद्या भवन, केजी मार्ग, केरल, स्कूल, कनॉट प्लेस और केन्द्रीय विद्यालय, गोल मार्केट। अभिलेखागार में भारतीय पाण्डुलिपियों की प्रदर्शनी इस दिन की उल्लेखनीय उपलब्धि थी। डॉ. अब्दुल गफ्फार, सालारजंग संग्रहालय, हैदराबाद के संयोजक ने घसीट लेखन की विभिन्न शैलियों का प्रदर्शन किया। छात्रों को सुलेख के लिए कैलीग्राफी कलम और चीनी स्याही का उपयोग सिखाया गया। इसके बाद, छात्रों के साथ एक बातचीत का सत्र (थिएटर समूह, येलोकैट्स आर्ट्स द्वारा) आयोजित किया गया था, जहां उन्हें महाभारत के पात्रों को अभिनीत करने हेतु प्रोत्साहित किया गया।