पाण्डुलिपि अध्ययन

    पाण्डुलिपि अध्ययन

    भारत की पाण्डुलिपि विरासत अपनी भाषाई और लेखन विविधता में अद्वितीय है। हालांकि, समकालीन शोधकर्ताओं में लिपियों के संबंध में कौशल या विशेषज्ञता की कमी ने इस शाब्दिक विरासत के अध्ययन और समझ के लिए खतरा उतपन्न किया है। इसके समाधान के लिए, एनएमएम ने भारतीय लिपियों और पाण्डुलिपि अध्ययनों में छात्रों और शोधकर्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक विस्तृत ढांचा विकसित किया है। कार्यशालाओं के माध्यम से, विश्वविद्यालयों में पाण्डुलिपि पाठ्यक्रम शुरू करना, और पाण्डुलिपि विज्ञान में उच्च अध्ययन के लिए फैलोशिप प्रदान करना, एनएमएम पाण्डुलिपि अध्ययन में एक कुशल संसाधन पूल तैयार करने में सीधे योगदान देना चाहता है।

    पाण्डुलिपि अध्ययन में प्रशिक्षण क्यों?

    राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन भारतीय पाण्डुलिपियों को सुरक्षित करने और उनकी ज्ञान सामग्री को सुलभ बनाने के लक्ष्य से काम करता है। हालांकि, इस विरासत का संरक्षण सार्थक होगा और केवल तभी संभव होगा, जब पाण्डुलिपियां वर्तमान में और भविष्य में प्रासंगिक हों। इसलिए, पाण्डुलिपियों के संबंध में शोध महत्वपूर्ण है ।

    • पाण्डुलिपि विज्ञान पाण्डुलिपियों का वैज्ञानिक अध्ययन है।
    • इसमें विशेषज्ञता की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है- कच्चे माल की तैयारी (कागज, भोजपत्र, ताल पत्र, स्याही, स्टाइलस); लिपि और वर्णमाला के विकास का अध्ययन; उच्च और निम्न आलोचनाओं की पद्धतियां; अनुवाद, व्याख्या, ग्रंथों का पुनर्निर्माण; पाण्डुलिपियों का परिरक्षण, संरक्षण और भंडारण; पाण्डुलिपि भंडारण के लिए संग्रहालयों और अभिलेखागार डिजाइनिंग; भाषा विज्ञान; लिखित परंपराओं का ज्ञान; आलोचनात्मक संपादन पाठ; सूचीकरण।
    • भारतीय पाण्डुलिपियां विभिन्न भाषाओं और लिपियों में पाई जाती है- जैसे नेवारी, गौड़ी, तिब्बती, कन्नड़, नाख आदि। लेकिन अफसोस की बात है, ऐसी लिपि पढ़ने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है। नतीजतन, इनके विलुप्त होने का खतरा है।
    • इसके अलावा, उपर्युक्त क्षेत्रों की विशेषज्ञता हमारी शिक्षा प्रणाली में प्रमुख रूप से नहीं मिलता है।

    इस प्रकार मिशन, पाण्डुलिपि विज्ञान और प्राचीन शिलालेख अध्ययन कार्यशालाओं के माध्यम से पाण्डुलिपि अध्ययन के विभिन्न पहलुओं में विद्वानों और विशेषज्ञों का एक संसाधन पूल तैयार करना चाहता है।