राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन की सबसे बड़ी तथा सर्वाधिक महत्वाकांक्षी परियोजना देश में और विदेश में सभी भारतीय पाण्डुलिपियों का एक डेटाबेस बनाना है। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि डेटाबेस, कृति संपदा मिशन की वेबसाइट के माध्यम से इन्टरनेट पर उपलब्ध है। हमारा उद्देश्य यथासंभव प्रत्येक पाण्डुलिपि का प्रलेखन करने का है, चाहे वह किसी संग्रहालय, पुस्तकालय, मंदिर, मदरसे की हो अथवा निजी संग्रह हो। रामपुर रजा पुस्तकालय, रामपुर और खुदाबख्श पुस्तकालय, पटना जैसी संस्थाएं अपने पाण्डुलिपि संग्रहों के लिए विश्वविख्यात हैं। फिर भी हजारों पांडुलिपियाँ दूरस्थ स्थानों पर व्यक्तियों और संस्थाओं के पास अज्ञात संग्रहों में बिखरी हुई पड़ी हैं। मिशन का सबसे बड़ा उद्देश्य भावी पीढ़ी के लिए ऐसी पाण्डुलिपियों का पता लगाना और इनका प्रलेखन करना है।
इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) और राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआईसी) के पास उपलब्ध कुछ इलेक्ट्रोनिक सूचना को भी मिशन के डेटाबेस में अंतरित किया गया। हम भारतीय पाण्डुलिपियों के संग्रह वाली विदेशी संस्थाओं के साथ नेटवर्किंग की प्रक्रिया में भी हैं और इन्हें शीघ्र ही सूचीबद्ध करने की आशा करते हैं।
मिशन ने मानुस ग्रंथावली नामक एक नया सॉफ्टवेयर (आईजीएनसीए के इलेक्ट्रोनिक प्रारूप पर आधारित) विकसित किया है। मानुस ग्रंथावली डबलिन कोर मेटाडेटा मानकों पर आधारित है जो पूरे विश्व में स्वीकार किए जाते हैं।
इस प्रकार, इलेक्ट्रोनिक डेटाबेस में व्यक्तिगत पाण्डुलिपियों, पाण्डुलिपि के संग्रहों और मुद्रित सूचियों के संबंध में सूचना होगी।
दिल्ली स्थित मिशन के मुख्यालय में प्रलेखन इकाई को इलेक्ट्रोनिक रूप में और भरी हुई डेटा शीटों के रूप में आंकड़े प्राप्त होते हैं। पाण्डुलिपियों के राष्ट्रीय डेटाबेस में कोई प्रविष्टि करने से पहले आंकड़ों की सावधानी से जांच की जाती है और सत्यापन किया जाता है। जो डेटाशीट किसी पाण्डुलिपि के संबंध में आधारभूत न्यूनतम सूचना उपलब्ध नहीं करातीं उन्हें हटाने के लिए व्यक्तिगत डेटाशीटों की छंटाई की जाती है। इलेक्ट्रोनिक स्वरूप में सूचना प्रविष्ट करने के बाद इसका सत्यापन किया जाता है और इसमें संशोधन किया जाता है। मिशन की प्रलेखन इकाई में रोमन और अरबी/फारसी लिपियों के लिए मानकीकृत विशेषक चिह्न हैं। हमने उन विषयों की एक विस्तृत सूची भी तैयार की है जिनके तहत पाण्डुलिपियों को वर्गीकृत किया जा सकता है, उदाहरण के लिए वेदांग को आगे शिक्षा, तजविद, चन्दा आदि में, और इनके वैदिक साहित्य, स्वर-विज्ञान तथा छन्दशास्त्र होने के कारण संबंधित अंग्रेजी शब्दों में वर्गीकृत किया जा सकता है।