गुरुकुल

    भारत विश्व भर में अपनी उत्कृष्ट सांस्कृतिक परम्पराओं के लिए जाना जाता है| प्राचीन काल में भारत की शैक्षणिक पद्धति को “श्रुत-परम्परा” कहा जाता था जिसे “गुरु-शिष्य-परम्परा” के तौर पर भी जाना जाता है| “उपनिषद” शब्द संस्कृत शब्द “उप” (निकट), “नि” (नीचे) और “सद्” (बैठना) से निर्मित है - जिसका अर्थ है “पास में नीचे बैठना” एक आध्यात्मिक शिक्षक द्वारा शिक्षा प्रदान करना| इस समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा को जारी रखने के लिए एनएमएम देश भर में 25 चुनिंदा पाण्डुलिपि संसाधन केंद्रों (एमआरसी) में ‘गुरुकुल’ स्कंध खोलने की योजना बना रहा है| जिसके माध्यम से प्रत्येक गुरुकुल में गुरु के पर्यवेक्षण में क्षेत्रीय अप्रकाशित पाण्डुलिपियों के संपादन और प्रतिलिपिकरण हेतु तीन विद्वान नियुक्त किए जाएंगे|