हमारे बारे में

    राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन की स्थापना पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा फरवरी, 2003 में की गई थी| अपने कार्यक्रम और अधिदेश में विलक्षणता लिए हुए इस परियोजना के माध्यम से मिशन का उद्देश्य भारत की विशाल पाण्डुलिपीय सम्पदा को अनावृत करना और उसको संरक्षित करना है| भारत लगभग दस मिलियन पाण्डुलिपियों से समृद्ध है जो संभवत: विश्व का सबसे बड़ा संकलन है| इसमें सम्मिलित हैं: अनेक विषय, पाठ संरचनाएं और कलात्मक बोध, लिपियां, भाषाएं, हस्तलिपियां, प्रकाशन और उद्बोधन|

    मिशन के पास भारत की पाण्डुलिपीय विरासत की पहचान करने, उसका प्रलेखन करने, संरक्षण करने और उसे उपलब्ध कराने का अधिदेश प्राप्त है| हम पाण्डुलिपियों, जो कि प्राय: संरक्षण की अत्यधिक जीर्ण स्थिति में होती हैं, में निहित विरासत को पुन: प्राप्त करने के अत्यधिक सामयिक चुनौती की तार्किक, मूल और तत्कालिक प्रतिक्रिया स्वरूप पाण्डुलिपियों के लिए मिशन को एक राष्ट्रीय प्रयास के रूप में देखते हैं|

    राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन राष्ट्रीय स्तर की एक व्यापक पहल है जो पाण्डुलिपियों के संरक्षण और उनमें निहित ज्ञान के प्रसार की आवश्यकता को पूरा करती है| राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ‘भविष्य के लिए अतीत का संरक्षण’ के आदर्श वाक्य के प्रति कार्य कर रहा है| यह नि:संदेह देश में सभी विरासत संरक्षण गतिविधियों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रभावी अभियान के तौर पर उभरा है|

     


    प्रधानमंत्री मिशन के शुभारंभ समारोह में 7 फरवरी, 2003 को नई दिल्ली में दीप प्रज्जवलित करते हुए

     

    मिशन का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन अब तक आरंभ किए गए अन्य मिशनों से भिन्न है| इसमें लाभ न तो प्रत्यक्ष हैं न ही दृष्टिगोचर……. मेरा विश्वास है कि राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन अनेक और मोहनजोदाड़ो और द्वारकाओं को प्रकाशित करेगा| इस मिशन के तकनीकी पहलू का संदर्भ लेते हुए प्रधानमंत्री ने यह उल्लेख किया कि आधुनिक विज्ञान दावों का साक्ष्य मांगता है और यह विज्ञान (आधुनिक प्रोद्यौगिकी) हमारे भव्य अतीत के इन साक्ष्यों को पुनर्जीवित करने का उपकरण प्रधान करती है| श्री वाजपेयी ने मिशन के तीन पहलुओं पर प्रकाश डाला: चूंकि 70% पाण्डुलिपियां संस्कृत में हैं अत: इस भाषा के शिक्षण और अध्ययन को और प्रवर्तित करने की आवश्यकता होगी और अनेक संस्थान जो पहले से ही इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं उन्हें इस मिशन से जोड़ा जाना होगा और अंतत: पाण्डुलिपियों के निजी अभिरक्षकों को आगे बढ़कर अपनी पाण्डुलिपियां मिशन को सौंप देने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एक बड़ा जागरूकता अभियान चलाना होगा| इस मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा पिछले वर्ष लाल किले से अपने 15 अगस्त के संभाषण में की गई थी| इस मिशन के लिए संस्कृति विभाग क्रियान्वयन मंत्रालय है और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को इसके लिए नोडल एजेंसी घोषित किया गया है|

    पूर्व राष्ट्रपति श्री वेंकटरमण, इं.गां.रा.क.कें. (आईजीएनसीए) के ट्रस्टी ने कहा कि सभी प्राचीन सभ्यताओं में से केवल भारतीय सभ्यता जीवित है| भारत के पास इन पाण्डुलिपियों में सभी विषयों पर भरपूर ज्ञान की संपदा है जिसका अनावरण अभी किया जाना है| उन्होंने निजी व्यक्तियों से संपर्क करने की आवश्यकता पर बल दिया क्योंकि बड़ी संख्या में पाण्डुलिपियां निजी अभिरक्षा में हैं| उन्होंने तमिल पाण्डुलिपियों के संकलन और प्रकाशन में यू. वीई. स्वामीनाथ अय्यर के पराक्रमी प्रयासों का हवाला दिया| उन्होने कहा कि तब पता चला कि लोगों ने उन्हें बोरियों में बांधा था और अटारी पर रखा हुआ था| उन्होंने कहा कि इन्हें हासिल करना होगा|


    (बाएं से दाएं) इं.गां.रा.क.कें. ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. एल.एम. सिंघवी, भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण, प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन और संस्कृति सचिव श्री धनेंद्र कुमार

    डॉ. एल.एम. सिंघवी अध्यक्ष, इं.गां.रा.क.कें. ट्रस्ट ने मिशन के शुभारंभ में प्रधानमंत्री की “इच्छा” की प्रशंसा की और उस पल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह पल इतनी जल्दी नही आया| “काफी कुछ खो चुका है और काफी कुछ खो जाने का खतरा है”, उन्होंने कहा| डॉ. सिंघवी ने कहा कि हमारी पाण्डुलिपियों की उपेक्षा बहुत लंबे समय से, यहां तक कि ब्रिटिश के भारत आने के पहले से होती चली आ रही है| उन्होंने कहा कि भारत में आने वाले विदेशी यात्री बहुमूल्य पत्थर और स्वर्ण नहीं ले गए अपितु अपने साथ पाण्डुलिपियां ले गए|

    केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जगमोहन ने अपने स्वागत संभाषण में कहा कि जो पाण्डुलिपियां प्रकाश में आई हैं और पाषाण कला जैसे जिन वास्तु साक्ष्यों को खोजा गया है उन्होंने भारत के बारे में दृष्टिकोण को बदला है| मिशन का कार्य जटिल है और उन्होंने कहा कि युवा शोधार्थियों के लिए यह एक चुनौती है| उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जो पाण्डुलिपियां देश के बाहर गई हैं उनकी वापसी करनी होगी| सचिव संस्कृति, श्री धनेंद्र कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा|

    इस अवसर पर मिशन के संबंध में सीडी सहित प्रधानमंत्री द्वारा जारी मिशन प्रलेख में मिशन के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विवरण है| इसमें कहा गया है: इस कार्य की बृहद प्रकृति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मौजूदा गति से नए कैटलॉग कैटेलोगोरम को पूरा करने में और पांच वर्ष लग सकते हैं और फिर भी यह व्यापक सूचीकरण नहीं होगा चूंकि मंदिरों, मठों और व्यक्तियों के पास स्थित पाण्डुलिपियों के संकलन की बड़ी संख्या अभी भी सूचीगत नहीं की गई है|